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गुरुवार, 6 जनवरी 2011

भारत में माना जाता है कि प्रार्थना में बड़ी शक्ति होती है, अब यह बात साबित भी हो गई है। एक नए शोध के मुताबिक जो लोग जीवन के कठिन दौर में प्रार्थना का रास्ता चुनते हैं, वे अपनी भावनाओं और समस्याओं से आसानी से निपट सकते हैं।विस्कोंसिन मेडिसन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का दावा है कि अमेरिका में 75 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो बीमारी, दुख, सदमे और गुस्से के कारण पैदा होने वाले नकारात्मक भावों से बचने के लिए सप्ताह में एक बार प्रार्थना करते हैं।मुसीबत में प्रार्थना किस प्रकार मददगार हो सकती है इसका पता लगाने के लिए समाजशास्त्र से स्नातक शाने शार्प ने कठिन दौर से गुजर रहे लोगों का साक्षात्कार लिया। 
शार्प ने अमेरिका में भौगोलिक, शैक्षणिक और जातीय आधार पर अलग-अलग लोगों का साक्षात्कार लिया। इसमें से अधिकांश लोग ईसाई पृष्ठभूमि से संबंधित थे।शार्प ने बताया कि सोशल फिजियोलॉजिकल क्वाटरली के अंक में गुस्से से उबल रहे लोगों ने बताया कि किस तरह प्रार्थना ने भावनाओं पर काबू पाने में उनकी मदद की। लोगों ने कहा कि उन्हें कोई सुनने वाला मिल गया शार्प ने कहा कि यदि वे दूसरे व्यक्ति को अपशब्द कहते तो इसका परिणाम हिंसा के रूप में सामने आता, लेकिन इसके बजाय उन्होंने प्रार्थना का सहारा लिया। प्रार्थना के दौरान लोग विश्वास करते हैं कि ईश्वर उन्हें देख रहा है और इससे अधिकांशत: सकारात्मक अनुभूति होती है।

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